पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबंध संपादक
बलरामपुर जिले के सात वर्षीय एक बच्चे को लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में लाया गया। लखनऊ के KGMU ट्रॉमा सेंटर में बलरामपुर की 7 साल की बच्ची को नई जिंदगी मिली है। उसकी गर्दन और जबड़े को चीरते हुए 8 सेंटीमीटर की एक कील दिमाग में धंस गई थी।बच्ची को बेसुध हालत में ट्रॉमा सेंटर लेकर आए।10 दिनों तक वेंटिलेटर सपोर्ट देकर उसकी जान बचाने में कामयाब रहे।
यह घटना तब हुई जब 15 मई को खेलते समय एक 8 सेंटीमीटर की कील बच्ची की गर्दन में धंस गई थी। जो उसकी गर्दन को चीरती हुई मस्तिष्क के बेहद संवेदनशील हिस्से तक पहुंच गई। परिजन बच्ची को बेसुध हालत में आधी रात KGMU लेकर ट्रॉमा सेंटर लेकर आए। जानकारी के अनुसार बच्ची बलरामपुर जिले के नवाजपुर की रहने वाली है। दिमाग में कील घुसने से गंभीर नुकसान हो सकता है, जिसमें मस्तिष्क क्षति, संक्रमण, और मृत्यु भी शामिल है.ऐसे मामलों में, कील को निकालने के लिए तत्काल सर्जरी की आवश्यकता होती है।एमआरआई और सीटी स्कैन रिपोर्ट देखने के बाद केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों को एहसास हुआ कि मामला बेहद खतरनाक है।
ट्रॉमा सेंटर में सर्जरी की प्लानिंग करने वाली टीम की अगुआई करने वाले डॉक्टर समीर मिश्रा ने बताया, कील काफी पतली थी, जिस कारण वह गर्दन, जबड़े को चीरते हुए दिमाग तक पहुंच गई थी। घरवाले सबसे पहले उसे नजदीक के निजी अस्पताल ले गए, जहां से डाक्टरों ने बच्ची को जिला अस्पताल भेज दिया। लेकिन वहां भी बच्ची का इलाज नहीं हो पाया। जिला अस्पताल के डाक्टरों ने बच्ची को KGMU (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) के ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया। डॉक्टर मिश्रा ने बताया- 16 मई को तड़के 2 बजे के करीब परिजन ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे। यहां डाक्टरों ने जल्द से जल्द बच्ची के ऑपरेशन का फैसला लिया। क्योंकि कील गर्दन और मुंह के रास्ते होते हुए ब्रेन तक गई थी। थोड़ी सी गलती बच्ची के लिए जानलेवा हो सकती थी। माइक्रो-सर्जिकल तकनीक और न्यूरो नेविगेशन सिस्टम की मदद ली गई। ऑपरेशन के दौरान खून की मुख्य नस को नुकसान पहुंचाए बिना कील को धीरे-धीरे बाहर निकाला गया। ऑपरेशन के लिए तीनों विभागों के डॉक्टरों की एक संयुक्त टीम बनाई गई थी। डॉ. समीर मिश्रा और डॉ. वैभव जायसवाल की टीम ने इस चुनौती भरे जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया। ऑपरेशन करने वाली टीम डॉ. समीर मिश्रा, डॉ.वैभव जायसवाल, डॉ. यादवेंद्र, सीनियर रेजिडेंट डॉ. लोकेश, जेआर डॉ. अर्पिता, जेआर डॉ. अर्चना, एसआर डॉ. आकांक्षा, एसआर डॉ. विशाल, एसआर डॉ. रंजीत चन्द्र सहित कुल 14 डॉक्टर शामिल रहे।
ऑपरेशन के दौरान खून की मुख्य नस को नुकसान पहुंचाए बिना कील को धीरे-धीरे बाहर निकाला गया।
ऑपरेशन तो पूरी तरह से सफल रहा,लेकिन उसकी हालत काफी गंभीर हो गई थी। बच्ची की उम्र कम होने के कारण कई प्रकार की अन्य दिक्कतें आ गईं थीं। उसे PICU (पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट) में 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया। ऑपरेशन के बाद बच्ची की जिंदगी से जंग आसान नहीं थी। फिलहाल,अब बच्ची राहत में है। अब बच्ची पूरी तरह से ठीक है और गुरुवार को उसे ICU से वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया।