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तलाक के लिए पति-पत्नी दोनों की मर्जी का होना जरुरी -सुप्रीमकोर्ट

दिनेश सिंह-एनसीआर ब्यूरो:

सुप्रीमकोर्ट ने तलाक के मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि “भारत में शादी कोई आकस्मिक घटना नहीं है ” | यहाँ का समाज अभी “आज शादी, कल तलाक” जैसे पश्चिमी मानकों तक नहीं पहुंचा है | पति-पत्नी के विवाह के बाद जब पत्नी चाहती है कि शादी न टूटे तो ऐसे में तलाक के लिए पति की याचिका पर विवाह को भंग करने के लिए कोर्ट अनुच्छेद -142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करेगा |

दरअसल, उच्च शिक्षा प्राप्त एक युवा दंपति ने शादी के मात्र 40 दिन के भीतर ही तलाक के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी | जिस पर सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस संजय के कौल व अभय एस ओका की खंडपीठ ने पति की शादी रद्द करने वाली याचिका से इनकर करते हुए दम्पति को एक निजी मध्यस्थ के पास भेजते हुए कहा कि यह शादी मात्र 40 दिनों तक ही चली,जो एक दूसरे को समझने के लिए पर्याप्त नहीं है |

इस दम्पति में पति एक एनजीओ चलता है और पत्नी को कनाडा में स्थाई निवास की अनुमति प्राप्त है | कोर्ट में सुनवाई के दौरान पति बार-बार खंडपीठ से शादी को रद्द करने की गुहार लगा रहा था | जबकि पत्नी का कहना था कि उसने इस शादी के लिए कनाडा में अपना सब कुछ छोड़ दिया है | शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद-142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल तभी किया जा सकता है जब पति-पत्नी दोनों आपसी सहमति से अलग हो रहे हों |

लेकिन इस केस में सिर्फ पति तलाक चाहता है जबकि पत्नी शादी को बरकार रखना चाहती है | ऐसे में पति-पत्नी को आपसी मतभेद को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए | इस पर पति ने कहा कि शादी को बचाने के लिए दोनों तरफ से किसी ने कोशिश नहीं की है | तब खंडपीठ ने उसे याद दिलाते हुए कहा कि आपकी पत्नी कनाडा में अपना सब कुछ छोड़कर आपसे शादी करने के लिए आई थी |

इसलिए एक सफल शादी के लिए दोनों को ही कोशिश करनी होगी | यह नहीं कि अभी शादी कर लो और तुरंत तलाक दे दो | यह हमारे समाज की परंपरा नहीं है |

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