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अनोखी आस्था की परम्परा

पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक:

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के लसूडिया परिहार गांव में हर साल दीपावली के दूसरे दिन एक अद्भुत परंपरा का आयोजन किया जाता है। इस दिन इंसानों की नहीं, बल्कि सांपों की अदालत लगती है। यह परंपरा बाबा मंगलदास के मंदिर से जुड़ी हुई है, जहां सांपों के काटे हुए लोग अपनी परेशानी का समाधान खोजने आते हैं। यहाँ, सांप खुद बताते हैं कि उन्होंने क्यों काटा, जो कि एक अनोखी धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

सीहोर जिले से मात्र 12 किलोमीटर दूर दीपावली के दूसरे दिन लसूड़िया परिहार में पड़वा को यह नजारा देखने को मिल रहा है। कई तो केवल इसी रहस्य को देखने गांव पहुंचे हैं। लसूड़िया परिहार में स्थित राम मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन सांपों की अदालत लगाई गई। इस अदालत में पिछले एक साल में लोगों को विभिन्न कारणों सांप के काटने के कारण को जानने के लिए आयोजन किया जाता है।

इस परंपरा के तहत, जब पुजारी मंत्रोच्चार करते हैं और थाली को नगाड़े की तरह बजाते हैं, तो यह सांपों के काटे हुए लोगों पर जादुई असर करता है। पीड़ित लोग महसूस करते हैं कि नाग देवता उनके भीतर आ चुके हैं. इसके बाद, वे बताने लगते हैं कि उन्हें किस वजह से डसा गया था। शुक्रवार को सांप के काटे करीब दो दर्जन से अधिक लोग पहुंचे थे। हनुमानजी की मड़िया के सामने लगी सांपों की पेशी के दौरान हजारों लोग यह जानने पहुंचे थे कि आखिर उन्हें सांप ने क्यों काटा। कारण जानने के लिए कांडी की धुन पर भरनी गाकर इन्हें पेशी पर बुलाया गया। इस दौरान पेशी पर पहुंचे सांपों ने शरीर में आकर काटने का कारण बताया गया।

ग्राम के नन्दगिरी महाराज की मानें तो यहां होने वाली सांपों की पेशी हमारी तीन पीढ़ी करती आ रही है। दीपावली के दूसरे दिन प्रदेश भर से सांप के काटने से पीड़ित लोग यहां आते है व काटने का कारण जानते हैं। कारण जानने के साथ ही दोबारा ऐसी घटना न हो जिसके लिए सांपों से वचन भी लिया जाता है।

ग्रामीणों की मानें तो मंदिर पर चिन्नोटा से आए मंगल दास महाराज ने ग्रामीणों को गुरू मंत्र दिया था। सांप के काटने से पीड़ित हजारों लोग मंदिर पर आते है। जहां सांप के काटने का कारण जान रहे है। मंगल दास जी महाराज ने मंदिर प्रांगण में ही समाधि ली है। गौरतलब है ग्राम लसूड़िया परिहार में बाबा मंगलदास की कृपा से सालों से सापों का जहर उस मानव शरीर से उतराने की परंपरा जारी है, जिसे नाग या नागिन ने डसा हो। बताते है कि यदि किसी को सांप काट ले तो उसे उपचार के लिए यहां लाया जाता है और उसके गले मे बेल बांधी जाती है।

पिछले एक साल में सांप के काटने से पीड़ित लोग अपनी परेशानी लेकर मंदिर पहुंचते है। जहां काटे जाने का कारण जानने के लिए ढोल मंजिरों और मटकी की धुन पर कांडी व भरनी गाई जाती है। जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति सांप की तरह लहराने लगता है। जहां पेशी पर बुलाए गए सांप काटे जाने का कारण बताते है। ग्रामीण सुरेश त्यागी ने बताया की कांड़ी, भरनी और विशेष मंत्र के साथ दोबारा पीड़ित को न काटे इसका संकल्प लिया जाता है।

सांपों की अदालत धार्मिक आस्था और सांपों के प्रति गहरे विश्वास की एक अद्वितीय कहानी सुनाती है। यह परंपरा न केवल एक अनोखी सामाजिक घटना है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और लोगों की आस्था का भी प्रतीक है।

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