पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक
लखनऊ के होटल हयात में आयोजित इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलाजी की ओर से आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में एसजीपीजीआई के पूर्व विशेषज्ञ डॉ उदय घोषाल ने जानकारी देते हुये बताया कि पहले लोग लक्षण के आधार पर इलाज करवाते थे | लक्षण ठीक होते ही बीमारी को ठीक मान लेते थे |
लेकिन वर्तमान चिकित्सा पद्धति में टारगेट थेरेपी और बायोलाजिकल दवाओं का चलन बढ़ा है | इसमें लक्षण के बजाय बीमारी को ठीक करने को प्राथमिकता दी जाती है | उन्होंने बताया कि पहले आंत की बायोलाजिकल दवाएं 80 हजार से लेकर 90 हजार तक मिलती थी | लेकिन सरकार के प्रयास व मेक इन इंडिया के कारण यही दवाएं 12 हजार से लेकर 14 हजार रूपये तक मेडिकल स्टोरों पर उपलब्ध हैं |
वहीं उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने सम्मेलन का उद्द्घाटन करते हुये कहा कि खान -पान मे बदलाव के कारण पेट की बीमारियों में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है | फिर भी सरकार के प्रयास से स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से सुधार किया जा रहा है | हर साल नये मेडिकल कालेज व विभाग खोले जा रहे हैं, साथ ही इनमें आधुनिक मशीनें भी लगाई जा रही हैं ,ताकि मरीजों को समुचित इलाज उपलब्ध हो सके |
इस आयोजन में जोधपुर (राजस्थान) से आए डॉ सुनील दाधिच ने बताया कि अन्नाशय से निकलने वाला पाचक रस यदि पैंक्रियाज़ से निकल कर शरीर के अन्य हिस्सों में आए तो इससे छोटी आंत व अन्य अंग गलने लगते हैं, और पैंक्रियाज़ में पानी जमा होने लगता है | यदि यही पानी संक्रमित हो जाय तो तीन-चार हफ्ते में मवाद बनने लगता है | जिससे मरीज का बचना मुश्किल हो जाता है |