पूनम शुक्ला:मुख्य प्रबन्ध संपादक:
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वीके बिड़ला व न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने जौनपुर में प्यारेपुर की ग्राम प्रधान सहित अन्य अधिकारियों की याचिका ख़ारिज करते हुये कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच के लिए समय सीमा तय न होना ,कानून के शासन को कमजोर करता है | जिससे विभागीय कार्य बुरी तरह से प्रभावित होता है |
साक्ष्य नष्ट होने के कारण जवाबदेही तय न हो पाने से लोगों का कानून व्यवस्था पर से विश्वास उठता है | भ्रष्टाचारी कानून से बाहर हो जाते हैं | जिससे पीड़ित के साथ अन्याय होने के साथ-साथ सरकारी खर्च भी बढ़ता है | भ्रष्ट अधिकारी तकनीकी कमियों का लाभ उठाते है,और अपराध की पुनरावृत्ति होती है |
उपरोक्त टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुये कहा है कि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की जांच के लिए गइडलाइन तैयार कर महानिबंधक के समक्ष पेश की जाय | इसके साथ ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी का गठन किया जाय, जो तीन महीने में रिपोर्ट प्रस्तुत करे | इसके लिए अधिकतम छह माह का समय रहेगा |
दरअसल, जौनपुर के प्यारेपुर की ग्राम प्रधान पुष्पा निषाद सहित मनीष कुमार सिंह,विनोद कुमार सरोज व जवाहरलाल ने अपने खिलाफ अमृत सरोवर निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायत के साथ सुजानगंज थाने में दर्ज एफआईआर रद्द करने व गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका दाखिल की थी |