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टू फिंगर टेस्ट, दुष्कर्म पीड़िता की गरिमा का हनन

केकेपी न्यूज़ ब्यूरो:

सुप्रीमकोर्ट के न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने दुष्कर्म व हत्या के मामले में झारखण्ड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ़ राज्य सरकार की टिप्पणी पर कठोर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रोक के बावजूद टू फिंगर टेस्ट का जारी रहना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है | इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है,और न तो इससे दुष्कर्म का होना या न होना साबित होता है

यह दुर्भाग्य है कि इस तरह की पिछड़ी भावना आज भी प्रचलन में है | इससे दुष्कर्म पीड़िता की गरिमा का हनन होता है | शीर्ष कोर्ट ने झारखण्ड हाईकोर्ट के 27 जनवरी 2018 के दोषी को बरी करने के फैसले को रद्द करते हुए 11 अक्टूबर 2006 के निचली अदालत के फैसले को बहाल कर दिया | जिसमे निचली अदालत ने दोषी को उम्र कैद की सजा सुनाई थी |

सुप्रीमकोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्देश देते हुए कहा कि मेडिकल कालेज के पाठ्यक्रम से भी इस टेस्ट को निकला जाय | शीर्ष कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म सम्बन्धी) में इस टेस्ट का कोई औचित्य नहीं है कि महिला सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं |

यह टेस्ट एक पुरुषवादी सुझाव है | जिसके अनुसार महिला के बयान पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता है | क्योंकि वह एक यौनाचार की अभ्यस्त महिला है |

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