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कानूनी मान्यता से वंचित हुआ समलैंगिक विवाह

पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक

समलैंगिक विवाह करने व इसको स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता देने की मांग करने वाले समूह को सुप्रीमकोर्ट से एक तगड़ा झटका लगा है | सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में सीधे तौर पर कहा है कि अदालत कानून नहीं बना सकती सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकती है | कानून बनाना संसद व राज्यों की विधान सभाओं का काम है

| सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि विवाह कोई मौलिक अधिकार नहीं है | समलैंगिक विवाह करने वाले लोगों को साथ में रहने का अधिकार है, और उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं कर सकता | समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी 20 याचिकाएँ सुप्रीमकोर्ट में विचारधीन थीं | जिस पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़,जस्टिस संजय किशन कौल,जस्टिस एस रवीद्र भट्ट,जस्टिस सीमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने मौजूदा कानून,न्यायशास्त्र और व्यक्तिगत अधिकारों की व्याख्या करते हुये उपरोक्त फैसला दिया है |

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह अदालत न तो विशेष विवाह अधिनियम की संवैधानिक वैधता को रद्द कर सकती है और न तो उसके प्रविधानों की फिर से व्याख्या कर सकती है | अदालत की अपनी सीमाएं हैं, क्योंकि ऐसा करना न्यायिक कानून देने जैसा होगा | उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा के क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते वक्त कोर्ट को विशेष तौर पर उन मामलों से दूर रहना चाहिए जो नीति को प्रभावित करते हों जो विधायिका के क्षेत्राधिकार में आते हों |

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि सरकार का दायित्व है कि समलैंगिक जोड़ों को साथ में रहने की अनुमति के साथ ही उन्हें कानून के तहत लाभ दें | किसी को साथ रहने से सिर्फ यौन अभूरुचि के आधार पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता | ऐसा प्रतिबंध लगाना संविधान के अनुच्छेद 15 का उलंघन होगा | भारतीय संविधान में यह आज़ादी सभी को मिली है चाहे वो किसी भी जेंडर से हो या उनकी कोई भी यौन अभिरुचि क्यों ना हो |

वहीं जस्टिस कौल ने समलैंगिकों को कुछ और अधिकार देने के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के फैसले से सहमति जताते हुये कहा कि समलिंगीय और विषमलिंगियों को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए |

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