पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक :
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुनवाई कर रही है। मंगलवार को केंद्र की ओर से बहस करते हुए सिलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को ध्यान देना चाहिए कि एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था । एएमयू ना तो अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किया गया था और ना ही उनके द्वारा प्रकाशित होता है।
केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बहस पूरी कर ली। केंद्र ने कहा कि एएमयू ना तो अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय है और ना ही उनके द्वारा प्रकाशित होता है।शीर्ष कोर्ट को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को सामाजिक न्याय और बराबरी के आधार पर परखना चाहिए।
मेहता ने अपनी दलीलों के समर्थन में एएमयू एक्ट में समय-समय पर हुए संशोधनों का जिक्र करते हुए उन संशोधनों के दौरान संसद में हुई बहस का कोर्ट को
हवाला दिया। साथ ही एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र किया और कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है बल्कि राष्ट्रीय महत्व का देश का बेहतरीन संस्थान है। उन्होंने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने के परिणाम बताते हुए कहा की संविधान का अनुच्छेद 15 (ए )कहता है, कि राज्य किसी के भी साथ जाति,धर्म ,भाषा ,जन्मस्थान, वर्ण के आधार पर भेद नहीं करेगा।
इसी अनुच्छेद का खंड 5 है जिसे पहले अपवाद कहा जाता था । कोर्ट ने उसे अपने फैसलों में उसे विस्तारित बराबरी कहा है अनुच्छेद 15 (5) कहता है कि राज्य एससी,एसटी और पिछड़ों आदि को बराबरी पर लाने के विशेष उपबंध कर सकता है, जब कि पीठ कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यकों को पसंद का संस्थान स्थापित करने और प्रबंधन की स्वतंत्रता ) इसका अधिकार देता है इसीलिए अल्पसंख्यक दर्जे को कड़ाई से परखने की जरूरत है।