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योगी सरकार का कामकाज, प्रियंका पर पड़ रहा भारी

– वजूद बचाने के लिए लोक लुभावन नारे की राजनीति कर रहीं प्रियंका

– अकेली पड़ी कांग्रेस सपा, बसपा और रालोद गठबंधन को राजी नहीं

– दमदार और ईमानदार सरकार के आगे नहीं चल रहा उनका कोई दांव

 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश अब इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस ने पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा पर इस बार बड़ा दांव लगाया है। यह तय है कि प्रियंका की अगुआई में ही कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। यूपी के यह चुनाव कांग्रेस और प्रियंका गांधी दोनों के लिए बेहद अहम हैं। बीते साढ़े चार वर्षों में सूबे की योगी सरकार द्वारा जनता के हित में चलाई गई योजनाओं के चलते प्रियंका के लिए कांग्रेस को सम्मानजनक स्थित में पहुंचा पाना बेहद ही कठिन है। जनता के बीच में योगी सरकार का कामकाज, प्रियंका गांधी पर भारी पड़ रहा है। प्रियंका गांधी को यह पता है। वह यह भी जानती हैं कि सपा, बसपा और रालोद सहित सूबे के छोटे दल भी उनसे गठबंधन करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस को बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से भी कड़ी चुनौती मिलेगी। यह सब देख कर ही अब प्रियंका गांधी यूपी की चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए जनता के बीच अपनी प्रतिज्ञाएं गिनाते हुए लोक-लुभावन राजनीति का जुआ खेलने में जुट गई हैं।

 

अपनी इसी रणनीति के तहत गत बुधवार को प्रियंका गांधी ने यह ऐलान किया कि यूपी में सरकार बनने पर आशा बहनों व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रतिमाह 10 हजार रुपये मानदेय दिया जाएगा। पिछले एक-डेढ़ महीने में प्रियंका गांधी ने लोक-लुभावन घोषणाओं की झड़ी लगाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों पर 40 फीसद महिला उम्मीदवार लड़ाने की घोषणा के साथ इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की सरकार बनने पर किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की। तीसरी घोषणा लड़कियों को स्मार्टफोन और स्कूटी देने की। उन्होंने चौथी घोषणा नागरिकों को 10 लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधा देने की है। कांग्रेस नेताओं के अनुसार, शिक्षा, रोजगार, व्यापार के संबंध में भी प्रियंका गांधी बहुत जल्द ऐसी कुछ लोकलुभावन घोषणाएं करने वाली हैं। उनकी इन घोषणाओं के बारे में अब आम जन तथा राजनीति के जानकारों के बीच में चर्चा होने लगी।

 

ऐसी चर्चाओं में लोग यह मान रहे हैं कि बीते चार वर्षों में सूबे की योगी सरकार ने अपने काम-काज से हर वर्ग को प्रभावित किया हैं। सरकार ने किसानों को उनकी फसल खास कर गन्ना, धान और गेहूं के मूल्य का भुगतान कराने में तेजी दिखाई है। बड़े पैमाने पर औद्योगिक निवेश करवाया है। सूबे की कानून व्यवस्था को बेहतर किया है। बड़े अपराधियों तथा माफियाओं के खिलाफ कठोर कर्रवाई की है। कोरोना संकट के दौरान लोगों के इलाज का बेहतर प्रबंध भी किया है। कोरोना से बचाव के लिए लोगों को वैक्सीन लगवाने में भी तेजी दिखाई जा रही हैं। प्रदेश सरकार के उक्त कार्य जिक्र करते हुए लोग प्रियंका गांधी की घोषणाओं को लोक-लुभावन राजनीति का जुआ बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि कांग्रेस वर्ष 1989 से यूपी की सत्ता से बाहर हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन कर 114 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। तब कांग्रेस को सिर्फ सात सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यूपी के 54,16,324 लोगों ने तब कांग्रेस को वोट दिया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में 6.2 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस यूपी में सीटें पाने के मामले में पांचवें नंबर की पार्टी बनी थी। अब कांग्रेस को सूबे की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए प्रियंका गांधी तरह -तरह की लोकलुभावन घोषणाएं कर रही है, लेकिन उनकी इन घोषणाओं को लोग ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’सरीखा मान रही हैं। अर्थात न तो कांग्रेस की सरकार बनेगी और न ही इन हवा-हवाई घोषणाओं को पूरा करने की नौबत आएगी।

 

वरिष्ठ पत्रकार वीएन भट्ट कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि स्वयं प्रियंका या उनकी पार्टी इस सच्चाई से अवगत नहीं हैं। उनके मुताबिक़,  प्रियंका गांधी या उनकी पार्टी जो घोषणाएं यूपी में कर रही है, वही घोषणाएं वह पंजाब, उत्तराखंड, गोवा या मणिपुर जैसे अन्य चुनावी राज्यों में क्यों नहीं कर रही है? क्या उक्त राज्यों की महिलाओं, किसानों और गरीबों को इसकी जरूरत नहीं है? जरूरत तो है, लेकिन वहां कांग्रेस चुनावी गुणा-गणित में है। इसलिए इन राज्यों में कांग्रेस उप्र जैसा जुआ खेलने से परहेज कर रही है। उप्र में कांग्रेस की दुर्दशा जगजाहिर है। वर्तमान में यूपी कांग्रेस की हालत यह है कि उसके पास न तो नेता है, न नीति है, न संगठन है, न ही कार्यकर्ता हैं। राष्ट्रीय लोकदल, आम आदमी पार्टी, पीस पार्टी और एआइएमआइएम जैसे छोटे दल आगामी चुनाव में उससे आगे निकलकर चौथे स्थान पर आने की फिराक में हैं। इस परिस्थिति में प्रियंका के पास घोषणाबाजी के जुए के अलावा कोई अन्य विकल्प बचा ही नहीं था। ऐसे में जब प्रियंका ने यह देखा कि किसी जमाने में दक्षिण भारत से शुरू हुई लोकलुभावन घोषणाओं और मुफ्तखोरी की अब राजनीति दिल्ली तक पैर पसार चुकी है। तो उन्होंने यूपी में लोकलुभावन योजनाओं का जुआ खेलने का फैसला किया। यह सवर्ण मतदाताओं को लुभाने की सुचिंतित रणनीति भी है। लेकिन योगी सरकार द्वारा जनता के हित में किए गए कार्यों और कांग्रेस संगठन की कमजोर स्थिति के चलते लोग प्रियंका के लोकलुभावन झांसे में फसेंगे ऐसा लगता नहीं है।

 

इसलिए अब उन्होंने आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस पदयात्रा के जरिये कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की सोची है। यह जानते हुए भी कि ऐसे कदमों से वोट नहीं मिलते फिर भी प्रियंका गांधी यूपी में खुद चुनाव लड़ने के सवाल पर कन्नी काट रही हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे स्वयं आगामी चुनाव में होने वाले कांग्रेस के हश्र से आशंकित हैं। चुनाव लड़ने-न लड़ने को लेकर प्रियंका की दुविधा उनके वादों और दावों को संदिग्ध बनाता है। इससे उनकी चुनावी रणनीति कमजोर सूबे में धार नहीं पकड़ रही है। और प्रियंका गांधी कांग्रेस को यूपी में प्रमुख विपक्षी पार्टी नहीं बना पा रही हैं।

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