पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक
पिछले कुछ वर्षों में तेजी के साथ सरकारी व निजी क्षेत्र में काफी मात्रा मेडिकल कालेज खुले हैं, लेकिन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का मूल्यांकन यही बताता है कि उनके संचालन में मानकों की अनदेखी की जा रही है | राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का यह निष्कर्ष आश्चर्य करने वाला है कि लगभग सभी मेडिकल कालेज 50% उपस्थिति की अनिवार्यता भी पूरी नहीं करते |
यदि सभी मेडिकल कालेजों में इस मानक का उलंघन हो रहा है तो इसका मतलब साफ है कि उनकी निगरानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है | न्यूनतम उपस्थिति का पूरा न होने का मतलब है कि मेडिकल कालेजों में सही तरीके से पढ़ाई नहीं हो रही है | राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने एक चौकने वाला खुलासा किया है कि अनेक मेडिकल कालेजों में फर्जी फ़ैकल्टी है, जो सिर्फ दिखावे की है | अभी हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने यह घोषणा की है कि उसके मानकों को पालन करने में विफल रहने वाले मेडिकल कालेजों पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है | लेकिन जुर्माना लगाने मात्र से सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती |
अधिकांश मेडिकल कालेज तय मानकों की अंदेखी करने में लगे हुये हैं | आखिर जब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि जो कुछ कागजों पर नजर आता है | उसका जमीनी हकीकत से कोई लेना देना नहीं है | इसके बावजूद भी अनेक मेडिकल कालेज सुधार के लिए तैयार नहीं हैं | लेकिन अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग उन अनदेखी करने वाले मेडिकल कालेजों को चिन्हित करते हुये उनकी मान्यता रद्द कर दे |
कुछ माह पहले केंद्र सरकार ने करीब 40 मेडिकल कालेजों की मान्यता रद्द कर दी थी, और लगभग 150 मेडिकल कालेजों को गहन निगरानी में लिया था, क्योंकि उनमें तमाम कमियाँ पाई गयी थी | अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की सार्थकता तभी है जब मेडिकल कालेजों में फ़ैकल्टी की नियुक्ति में फर्जीवाड़े से लेकर अनेक कमियों को प्राथमिकता के आधार पर दुरुस्त करने का प्रयास करे |