गैर कानूनी तरीके से रिकार्ड की गयी टेलिफोनिक वार्तालाप भी “साक्ष्य” के रूप मे ग्राह्य

पूनम शुक्ला-मुख्य प्रबन्ध संपादक

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो अभियुक्तों के बीच रिकार्डेड टेलिफोनिक वार्तालाप का साक्ष्य भी इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि उसे गैरकानूनी तरीके से रिकार्ड किया गया है | यह आदेश जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की रिवीज़न याचिका को खारिज करते हुये पारित किया |

दरअसल,2015 में हैदर अली ने सीबीआई में शिकायत दर्ज़ कराई थी कि उसका एक बिल पास करने के लिए फतेहगढ़ कैंटोनमेंट बोर्ड के सदस्य शशि मोहन ने बोर्ड के सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की ओर से डेढ़ लाख रुपए रिश्वत की मांग की | जांच के दौरान सीबीआई ने दोनों अभियुक्तों का टेलिफोनिक वार्तालाप रिकार्ड किया | जिसमें शशि मोहन द्वारा कथित रूप से याची को बताया गया कि हैदर अली ने बिल राशि का छः प्रतिशत भुगतान कर दिया है |

इस पर याची ने सिर्फ “हाँ” मे जवाब दिया | इससे पहले शशि मोहन आगे बात करता ,याची ने ऑफिस आकार उससे बात करने को कहा | सीबीआई द्वारा रिकार्डेड उक्त वार्तालाप को साक्ष्य के रूप में ग्राह्यता को याची ने सीबीआई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी |वहाँ से राहत न मिलने पर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की |

याची की ओर से “पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिवर्टीज़” मामले में सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिये गए दिशानिर्देशों का हवाला देते हुये कहा गया कि बिना प्रक्रिया का पालन किए रिकार्डिंग की गयी है | इसलिए यह ग्राह्य साक्ष्य नहीं है | बेंच ने कहा कि उक्त मामले में सुप्रीमकोर्ट के समक्ष “इंटरसेप्टेड टेलिफोनिक कनवरसेशन” के साक्ष्य के तौर पर ग्राह्यता का प्रश्न नहीं था | इस आधार पर टेलिफोनिक वार्तालाप का साक्ष्य अस्वीकार नहीं किया जा सकता |

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