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सप्तपदी(सात फेरे)हिन्दू विवाह का अनिवार्य अंग-इलाहाबाद हाईकोर्ट

पूनम शुक्ला : मुख्य प्रबन्ध संपादक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिन्दू विवाह में वैधता के लिए सप्तपदी यानि सात फेरे को अनिवार्य मानते हुए विवाह समारोह को ही कानून की नज़र में वैध विवाह माना है | यदि ऐसा नहीं है तो कानून की नज़र में वैध विवाह नहीं माना जाएगा | यह टिप्पणी इलाहाबाद के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने वाराणसी की स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह की याचिका की सुनवाई करते हुये की | साथ ही कोर्ट ने याची के विरुद्ध जारी सम्मन तथा परिवाद की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है |

दरअसल,स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह के पति व ससुराल के लोगों ने बिना तलाक दिये दूसरा विवाह करने का आरोप स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह के ऊपर लगाते हुये परिवाद दाखिल किया था | जिस पर हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की जिरह को सुनने के बाद कहा कि “याची के खिलाफ दर्ज़ शिकायत में विवाह समारोह सम्पन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है, जबकि वैध विवाह के लिए सभी रीति-रिवाज के साथ विवाह सम्पन्न होना जरूरी है | यदि ऐसा नहीं है तो कानून की नजर में यह वैध विवाह नहीं होगा |

यदि पहली पत्नी से बिना तलाक लिए उसकी मर्जी से कोई व्यक्ति रीति-रिवाज के साथ दूसरा विवाह करता है तो यह विवाह कानूनी वैध होगा | साथ ही कोई विवाहित पुरुष किसी विवाहित,तलाक़शुदा या विधवा महिला से उसकी मर्जी से संबंध रखता है तो उस पुरुष या महिला पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती |

साथ ही आपकी जानकारी के लिए यह बताते चलें कि सनातन धर्म में विवाह के समय अग्नि को साक्षी मान कर वर-वधू सात फेरे लेते हैं | इसमें वधू अपने वर से सात वचन लेती है, तथा वर अपने वधू से पाँच वचन लेता है | इसके बाद विवाह पूर्ण माना जाता है | इस पूरी प्रक्रिया को सप्तपदी कहते हैं |

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