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संत सियाराम बाबा का देहावसान,भक्तों में शोक की लहर

पूनम शुक्ला:मुख्य प्रबन्ध संपादक: 
मध्य प्रदेश: संत सियाराम बाबा के देहावसान की खबर जैसे ही मिली, बड़ी संख्या में भक्तों के आश्रम पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया । प्रशासन ने अपील की है कि अंतिम दर्शन के लिए धैर्य बनाए रखें। संत सियाराम बाबा पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। बीते तीन दिन से आश्रम में एकत्र भक्त उनके स्वास्थ्य के लिए जाप कर रहे थे और भजन गा रहे थे। मुख्यमंत्री मोहन यादव के निर्देश के बाद डाक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखे हुए थी।

मां नर्मदा व हनुमानजी के परम भक्त सियाराम बाबा का निधन मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के पावन दिन पर हुआ | सियाराम बाबा ने बुधवार की सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर इस नश्वर शरीर का त्याग कर किया । मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में भट्टयान आश्रम में रहने वाले निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा के दुनियाभर में लाखों भक्त हैं।

संत सियाराम बाबा ने नर्मदा किनारे अपने आश्रम बनाया। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की थी और बारह वर्षों तक मौन रहकर अपनी साधना पूरी की थी। मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम बाबा कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते हैं। बताया जाता था की उनकी उम्र 100 साल से ज्यादा थी। बाबा ने बारह वर्षों तक मौन भी धारण कर रखा था। चाहे कड़ाके की सर्दी हो या फिर झुलसा देने वाली गर्मी बाबा हमेशा सिर्फ एक लंगोट में ही रहते थे। भक्तों का कहना है कि उन्होंने कभी भी बाबा को लंगोट के अलावा किसी और कपड़े में नहीं देखा |

सियाराम बाबा का चाय और केतली वाला किस्सा भी लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है। भक्तों का कहना है कि बाबा जब भी लोगों को चाय देते थे, तो उनकी केतली की चाय कभी खत्म नहीं होती। इन चमत्कारी संत की उम्र 100 साल से भी ज्यादा थी, लेकिन फिर भी बिना चश्मे के बाबा 21 घंटों तक रामायण का पाठ करते थे । कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर बाबा के एक चमत्कार का एक वीडियो भी जमकर वायरल हुआ था | जिसमें वे बिना माचीस के ही दीपक जलाते हुए दिखाई दे रहे थे।

जो भक्त आश्रम में उनसे मिलने आते थे ,और ज्यादा दान देना चाहते थे, तो वे इनकार कर देते थे। वे सिर्फ दस रुपये का नोट ही लेते थे। उस धनराशि का उपयोग भी वे आश्रम से जुड़े कामों में लगा देते थे। नर्मदा के घाटों के निर्माण के लिए भी उन्होंने बड़ी राशि दान की थी।

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