केकेपी न्यूज़ ब्यूरो:
सुप्रीमकोर्ट ने एक अहम् व ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अविवाहित लड़कियों को भी अबॉर्शन(गर्भपात) का अधिकार है | किसी को इस आधार पर गर्भपात से नही रोका जा सकता है कि वह शादीशुदा नहीं है | शीर्ष अदालत ने कहा कि आज भी समाज के विभिन्न हिस्सों में विवाह पूर्व सेक्स सम्बन्ध बनाये जाने को लेकर कितने पूर्वाग्रह हैं |
वैसे भी स्त्री पुरुष को लेकर समाज की सोच बदल रही है | हर कोई स्वेच्छा से जिन्दगी जीना चाहता है | इसी को लेकर शीर्ष अदालत ने पहले से ही लिव-इन-रिलेशन को मान्यता दे चुका है | ऐसे में कोई कारण नहीं बनता है कि कानून की संकीर्ण व्याख्या करते हुए कोई किसी महिला के निजी जीवन में दखल दे | क्योंकि हर महिला को उसके शरीर पर पूरा अधिकार होता है | गर्भपात कराना या बच्चे को जन्म देना, संविधान के अनुच्छेद -21 के तहत उसे मिले व्यक्तिगत अधिकार का अभिन्न हिस्सा है |
शीर्ष अदालत ने गर्भपात को लेकर कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी ) रूल्स 2003 के अनुसार गर्भ के 20 हफ्ते हो जाने के बाद जिन विषम परिस्थितियों में गर्भपात की इजाज़त दी जा सकती है | उसमें शादीशुदा होना अनिवार्य है | अविवाहित लड़कियों के केस शामिल नहीं है | इसके बावजूद शीर्ष कोर्ट ने आधुनिक व प्रगतिशील रुख अपनाते हुए व कानून की उदार व्याख्या करते हुए कहा कि इसी कानून के 2021 में संशोधित प्रावधानों में पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है |
इससे साफ़ संकेत मिलता है कि कानून निर्माता महिला पुरुष के संबंधों को सिर्फ शादीशुदा रिश्तों तक सीमित रखने के पक्ष में नहीं थे | वैसे भी अब महिला -पुरुष अपनी जिन्दगी स्वेच्छा से जीना चाहते हैं |